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ईरान और इजराइल के बीच पिछले चार दिनों से भारी सैन्य संघर्ष चल रहा है. दोनों देश एक-दूसरे को खत्म करने की फिराक में हैं. ईरान और इजराइल दोनों इस वक्त खूब चर्चा में हैं. लेकिन यहां हम ईरान के सुप्रीम लीडर की बात करने जा रहे हैं. वो सुप्रीम लीडर जिन्होंने 70 के आखिरी में तेहरान की राजनीति को नई दिशा दी थी. उनका नाम है रूहोल्लाह खुमैनी. यह शख्स ईरान में इस्लामिक क्रांति का सबब बना. इसमें एक दिलचस्प बात यह निकलर सामने आई है कि खुमैनी परिवार का सीधा संबंध उत्तर प्रदेश के बाराबंकी है. चलिए जानते हैं कि आखिर सच क्या है.
क्या सच में खुमैनी के पूर्वज भारतीय मूल के हैं
ऐसा माना जाता है कि अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी के दादा सैयद अहमद मुसावी उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में पैदा हुए थे. उस गांव का नाम था किंतूर, लेकिन वहां तब भी शिया मुस्लिम स्कॉलर्स का दबदबा था. कहते हैं कि मुसावी हिंदुस्तान के लिए अपने लगाव को जताना चाहते थे, इसलिए अपने नाम के आगे हिंदी जोड़ा करते थे. हालांकि यह परिवार शुरू से भारत में नहीं रहता था, उसकी जड़ें ईरानी ही थीं. लेकिन ये लोग 18वीं सदी के अंत में भारत पहुंचे थे.
आखिर क्यों आए थे भारत
उनके भारत में आने के मकसद को लेकर कई विद्वानों का मानना है कि वो शिया धर्म का प्रचार करना चाहते थे, इसलिए यहां तक पहुंचे. कहते हैं कि 17-18वीं सदी के बीच में ईरान के शिया विद्वान अपने धर्म के प्रचार के लिए बाराबंकी, लखनऊ और हैदराबाद तक गए थे. उस दौर में बाराबंकी शिया नवाबों का इलाका हुआ करता था. ये नवाब शिया स्कॉलर्स को इमामबाड़ों और मस्जिदों में संरक्षण की जिम्मेदारी और पद देते थे. काबिल होने पर तरक्की भी मिलती थी.
फिर कैसे पहुंचे ईरान
ईरानियों के भारत में पलायन को लेकर यह भी कहा गया कि उस दौर में भी वहां पर सत्ता को लेकर संघर्ष चल रहा था, इसलिए वहां से स्कॉलर्स यहां आने लगे. इसी क्रम में मुसावी भी बाराबंकी पहुंचे और यहीं बस गए. आगे चलकर वे धार्मिक प्रचार के लिए पहले इराक और फिर ईरान गए थे. इसके बाद उनका परिवार फैला.
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