आर्म्स डील करने के लिए क्या पीएम को भी लेनी होती है परमिशन, क्या हैं इसके नियम?

<p style="text-align: justify;"><span style="font-weight: 400;">भारत में हथियारों की डील एक महत्वपूर्णं विषय है. इसमें देश के रक्षा क्षेत्र में देशी और विदेशी हथियारों की खरीद-फरोख्त शामिल है. भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयात करने वाला देश है. हथियारों के आयात के मामले में भारत के रूस, फ्रांस, अमेरिका और इजराइल जैसे देशों के साथ खास संबंध हैं. भारत और रूस के बीच पारंपरिक हथियारों को लेकर कई प्रमुख डील हो चुकी हैं. वहीं हाल के देशों में अमेरिका, फ्रांस और इजराइल जैसे देशों के साथ हथियारों के आयात में बढोतरी हुई है. भारत अपनी सेना को मजबूत करने और हथियारों की कमी को दूर करने के लिए विदेशों से सीधे तौर पर हथियारों की खरीद कर रहा है. लेकिन क्या आर्म्स डील करने के लिए पीएम को भी परमिशन की जरूरत होती है. चलिए जानें.</span></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>क्या पीएम को भी लेनी होती है परमिशन</strong></p>
<p style="text-align: justify;"><span style="font-weight: 400;">भारत में हथियारों के सौदे के लिए प्रधानमंत्री की स्पष्ट अनुमति की जरूरत नहीं होती है, लेकिनय ये सौदे कड़े नियम और निगरानी के बीच होते हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय उच्च स्तरीय निर्णयों में शामिल हो सकता है, लेकिन वास्तविक खरीद प्रक्रिया विभिन्न सरकारी निकायों के द्वारा संभाली जाती है. इसके लिए कई एजेंसियों से अप्रूवल लेने की जरूरत होती है. हथियारों की डील के लिए किसी तरह से अलग से लाइसेंस या अनुमति लेने की जरूरत नहीं होती है. इसमें रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और अन्य संबंधित एजेंसियां शामिल होती हैं, ताकि नियमों का पालन किया जा सके.&nbsp;</span></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>भारत में हथियारों के डील के नियम</strong></p>
<p style="text-align: justify;"><span style="font-weight: 400;">भारत में विदेशों से हथियारों की डील के नियम विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संधियों और समझौतों द्वारा शासित होती है, जैसे कि शस्त्र व्यापार संधि और परमाणु अप्रसार संधि. ये नियम हथियारों के हस्तांतरण, उत्पादन और उपयोग को रेगुलेट करते हैं और परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने का प्रयास करते हैं. शस्त्र व्यापार संधि के जरिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित किया जाता है. यह 24 दिसंबर 2014 को लागू हुई थी और इसका लक्ष्य हथियारों के अवैध व्यापार को रोकना है और पारंपरिक हथियारों के हस्तांतरण को बढ़ावा देना भी है. इस संधि पर 130 से ज्यादा देशों ने हस्ताक्षर किए हैं.&nbsp;</span></p>
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