पाकिस्तान में कब हुआ था सबसे बड़ा दंगा, कितने लोगों ने गंवाई थी अपनी जान?

<p style="text-align: justify;">पाकिस्तान का इतिहास दंगों से भरा रहा है जैसे कि वर्तमान में बलूचिस्तान, सिंधु को अलग करने की मांग को लेकर यहां प्रदर्शन हो रहे हैं. भारत से अलग होने के बाद हमेशा से ऐसा ही कुछ पाकिस्तान में देखने को मिला है. अगर हम पाकिस्तान का इतिहास उठाकर देखते हैं तो इसमें राजनीतिक अस्थिरता, नस्लीय तनाव और सांप्रदायिक दंगे हुए हैं. कुछ दंगों का प्रभाव कम था, लेकिन कुछ दंगे ऐसे भी थे जिन्हें आज भी याद किया जाता है. इनको याद करने के पीछे जो मुख्य कारण है वह इनमें हुए जानमाल का नुकसान और इनका भयावह दृश्य है. चलिए, आज हम आपको कुछ ऐसे ही दंगों के बारे में बताते हैं जिनमें बड़े पैमाने पर लोगों ने अपनी जान गंवाई थी.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>पाकिस्तान का सबसे बड़ा दंगा </strong></p>
<p style="text-align: justify;">University of central Arkansas ने पाकिस्तान के दंगों पर एक रिसर्च रिपोर्ट पब्लिश की थी जिसमें 7 अक्टूबर 1958-8 जून 1962 तक पाकिस्तान के राजनीतिक और जातिय संघर्षों को दिखाया गया था. रिपोर्ट के अनुसार, जनरल अयूब खान के पाकिस्तान के राष्ट्रपति बनने के बाद पाकिस्तान में 1960-1961 में जातीय/राजनीतिक हिंसा में लगभग 1,000 लोग मारे गए और फिर अयूब खान ने 1 मार्च 1962 को एक नए संविधान को मंजूरी दी जो 7 जून 1962 में लागू हुआ और फिर 8 जून 1962 को राजनीतिक दलों को वैध बनाने और मार्शल लॉ हटाने की घोषणा की इस पूरे घटनाक्रम के दौरान उपजे विवाद में 1,500 लोग मारे गए. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>कराची दंगा </strong></p>
<p style="text-align: justify;">पाकिस्तान की स्थापना के बाद यहां बड़े पैमाने पर दंगे हुए. उस दौरान पाकिस्तान की राजधानी रहे लाहौर में हिंदू और मुस्लिमों के बीच कई दंगे हुए जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए. अल-वहीद अखबार ने एसोसिएटेड प्रेस के हवाले से खबर प्रकाशित की थी, जिसमें बताया गया कि सिर्फ दो दिनों में 127 लोग मारे गए और 300 से अधिक घायल हुए थे. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, उस दौरान इन दंगों में हिंदू आबादी को निशाना बनाया गया और जमकर लूटपाट की गई. इन्हीं दंगों के चलते पाकिस्तान में लाहौर शहर के अंदर पहली बार कर्फ्यू लगाया गया. इसके बाद साल 1986 में भी कराची के अंदर बड़े पैमाने पर दंगे हुए थे जिसमें 130 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. 1986 में मुहाजिर कौमी मूवमेंट औरपश्तून समुदाय के बीच टकराव ने शहर को हिंसा की आग में झोंक दिया था. यह एक तरह से जातीय और राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई थी जिसमें सार्वजनिक परिवहन, दुकानें और सरकारी इमारतें दंगाइयों के निशाने पर रहीं. </p>
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